Wednesday, September 28, 2011

Rang De Basanti?

मेरा रँग दे बसन्ती चोला

लखनऊ जेल में काकोरी षड्यन्त्र के सभी अभियुक्त कैद थे. केस चल रहा था इसी दौरान "बसन्त पंचमी" का त्यौहार आ गया. सबने मिलकर तय किया कि कल बसन्त पंचमी के दिन सभी सर पर पीली टोपी और हाथ में पीला रूमाल लेकर कोर्ट चलेंगे. उन्होंने अपने नेता राम प्रसाद 'बिस्मिल' से कहा- "पंडितजी! कल के लिए कोई फड़कती हुई कविता लिखिये, उसे हम सब मिलकर गायेंगे." अगले दिन कविता तैयार थी;

मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....
इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

भगतसिंह जब लाहौर जेल में  बन्द थे तो उन्होंने इसमें ये पंक्तियाँ और जोड़ी थीं:

इसी रंग में बिस्मिल जी ने "वन्दे-मातरम" बोला,
यही रंग अशफाक को भाया उनका दिल भी डोला;
इसी रंग को हम मस्तों ने लहू में अपने घोला.
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

मेरा रँग दे बसन्ती चोला....हो माय! रँग दे बसन्ती चोला....
मेरा रँग दे बसन्ती चोला....

आज अमर शहीद भगतसिंह की १०४ वीं जयन्ती पर  उन्हीं के प्रिय गीत के साथ हम सब भारतवासियों की उस दिव्यात्मा को हार्दिक श्रद्धान्जलि!!! 

Friday, September 23, 2011

Need to understand Ram Prasad 'Bismil' now?

बिस्मिल का क्रान्ति-दर्शन [भाग-दो]
पूर्व प्रधानमन्त्री भारत सरकार श्रीयुत् अटलबिहारी वाजपेयी 19 दिसम्बर 1996 को दिल्ली में सरफरोशी की तमन्ना का विमोचन करते हुए। सबसे बायें ग्रन्थावली के लेखक  हैं।

भारतवर्ष को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त कराने में यूँ तो असंख्य वीरों ने अपना अमूल्य बलिदान दिया परन्तु रामप्रसाद 'बिस्मिल' एक ऐसे अद्भुत क्रान्तिकारी थे जिन्होंने अत्यन्त निर्धन परिवार में जन्म लेकर साधारण शिक्षा के बावजूद असाधारण प्रतिभा और अखण्ड पुरुषार्थ के बल पर ''हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ'' के नाम से देशव्यापी संगठन खड़ा किया जिसमें एक-से-बढकर एक तेजस्वी व मनस्वी नवयुवक शामिल थे जो उनके एक इशारे पर इस देश की व्यवस्था में आमूल परिवर्तन कर सकते थे किन्तु अहिंसा की दुहाई देकर उन्हें एक-एक करके मिटाने का क्रूरतम षड्यन्त्र जिन लोगों ने किया उनके नाम का सिक्का आज पूरे भारत में चलता है। उन्हीं का चित्र भी भारतीय पत्र मुद्रा (Paper Currency) पर दिया जाता है। अमरीकी डॉलर के आगे भारतीय मुद्रा का क्या मूल्य है? क्या किसी बुद्धिजीवी ने कभी इस मुद्दे पर विचार किया? एक व दो अमरीकी डॉलर पर आज भी जॉर्ज वाशिंगटन का ही चित्र छपता है जिसने अमरीका को अँग्रेजों से मुक्त कराने में प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने युद्ध लड़ा था। बिस्मिल की पहली पुस्तक सन् १९१६ में छपी थी जिसका नाम था-''अमेरिका की स्वतन्त्रता का इतिहास''। बिस्मिल  जन्म शताब्दी वर्ष : १९९६-१९९७ में यह पुस्तक स्वतन्त्र भारत में फिर से प्रकाशित हुई जिसका विमोचन किसी और ने नहीं, बल्कि भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया और ४ खण्डों में प्रकाशित जिस ग्रन्थावली सरफरोशी की तमन्ना में यह पुस्तक संकलित की गयी थी उसको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो० राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) का आशीर्वाद भी प्राप्त था। इस सम्पूर्ण ग्रन्थावली में बिस्मिल की लगभग दो सौ प्रतिबन्धित कविताओं के अतिरिक्त पाँच पुस्तकें भी शामिल की गयी थीं। परन्तु इसे भारतवर्ष का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि आज तक किसी भी सरकार ने बिस्मिल के क्रान्ति-दर्शन को समझने व उस पर शोध करवाने का प्रयास तक नहीं किया जबकि गान्धीजी द्वारा १९०९ में विलायत से हिन्दुस्तान लौटते समय पानी के जहाज पर लिखी गयी पुस्तक हिन्द स्वराज पर शोध व संगोष्ठियाँ करके सरकारी कोष का अपव्यय किया जा रहा है
देखा जाये तो आज बिस्मिल के सपनों का हिन्दुस्तान निर्माण करके इस देश के सोये हुए स्वाभिमान को जगाने की परम आवश्यकता है। कांग्रेस की सरकार हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात तो बहुत करती है परन्तु जनता में अशफाक और बिस्मिल की कभी कोई चर्चा या उदाहरण प्रस्तुत नहीं करती। भारतीय जनता पार्टी को भी स्वातन्त्र्य समर के सेनापति रामप्रसाद 'बिस्मिल' की याद नहीं आती, जिनकी आत्मकथा किसी रामचरितमानस से कम नहीं। देखा जाये तो सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी ढपली पर अपना राग अलापने में लगे हुए हैं ताकि किसी तरह से सत्ता का स्वाद चखने को नहीं,निर्लज्जतापूर्वक भोगने को मिलता रहे । १५ अगस्त १९४७ का सूर्य उगने से पूर्व रात के गहन अँधेरे में भारत को स्वाधीनता तो मिल गयी, स्वतन्त्रता नहीं। आज भी यहाँ की ७५ प्रतिशत जनता चौपट राजा की अन्धेर नगरी में भटकने के लिये विवश है। बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के स्थान-स्थान पर स्टेचू लगाकर वोट जुटाने का पुतला तो खडा कर दिया गया है परन्तु कोई यह समझने या समझाने की कोशिश नही करता कि भारत का संविधान विदेशियों की नकल करके क्यों बनाया गया? किसी भी पार्टी के प्रत्याशी को ''स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास'' नहीं पढाया जाता। चुनाव जीतने के लिये रेस के घोड़ों की तरह प्रत्याशियों का चयन किया जाता है। आज तक हमारे देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, सभी सरकारी-गैरसरकारी काम-काज अँग्रेजी में होता है। देश में अँग्रेजी शिक्षा के नाम पर सभी स्कूलों ने लूट मचा रखी है और ऐसे स्कूलों से पढकर आये अधिकांश छात्र किसी छोटे-मोटे काल-सेण्टर में काम करते-करते या तो कोल्हू के बैल बनकर रह जाते हैं या फिर किसी धोबी के कुत्ते की तरह न घर के रहते हैं न घाट के। हजारों की संख्या में भारत आ चुकी विदेशी कम्पनियाँ अँग्रेजी पढे-लिखे नवयुवकों को आकर्षक वेतन का लालच देकर उनके खून पसीने से अपने देश की अर्थ-व्यवस्था मजबूत करने में लगी हुई हैं। एक ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने हमें ३०० वर्ष से अधिक समय तक गुलाम बनाकर रक्खा अब तो ये कम्पनियाँ हजारों की संख्या में हैं, भगवान जाने इस देश का क्या होगा?
यह बात हमारे देश के कितने नवयुवक जानते हैं कि जब यहाँ सन् १६०० में टॉमस रो नाम का अँग्रेज व्यापार करने का प्रार्थना-पत्र लेकर आया था तब मुगल बादशाह जहाँगीर का शासन था और १९४२ में जब ''ट्रान्सफर ऑफ पावर एग्रीमेण्ट'' तैयार किया गया तब एलेन ओक्टेवियन ह्यूम नामक एक अंग्रेज़ द्वारा १८८५ में स्थापित कांग्रेस में केवल गान्धी जी की तानाशाही चल रही थी। उन्हीं के मानसपुत्र जवाहरलाल नेहरू ने ''लॉर्ड लुइस मौण्टवेटन'' के साथ उस ''सत्ता हस्तान्तरण समझौते'' पर हस्ताक्षर किये थे और ब्रिटिश सरकार को यह वचन देकर सत्ता प्राप्त की थी कि जैसे अंग्रेज़ यहाँ पर शासन चला रहे थे वैसे ही उनकी पार्टी कांग्रेस भी चलायेगी। संविधान में देश का नाम बदल कर इण्डिया दैट इज भारत कर दिया, गान्धी जी को राष्ट्रपिता घोषित करके उनका फोटो भारतीय मुद्रा पर छाप दिया, रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा सन् १९११ में जॉर्ज पंचम की स्तुति प्रशस्ति में लिखा व गाया गया गीत "भारत भाग्य विधाता" राष्ट्रगान घोषित कर दिया और कांग्रेस को ''करप्शन'' की खुली छूट दे दी। लोकतन्त्र के नाम पर सम्पूर्ण शासन व्यवस्था को ''लूटतन्त्र'' बना दिया और शहादत के नाम पर केवल गान्धी (नेहरू) - परिवार की कुर्बानियों को तिल का ताड़ बनाकर प्रस्तुत किया। ऐसी परिस्थितियों में फिर से आम आदमी को रामप्रसाद 'बिस्मिल' की रचनाओं का वास्तविक ''क्रान्ति-दर्शन'' समझाने की आवश्यकता है।
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नोट: मेरे ब्लॉग के पाठक यदि अधिक जानकारी चाहते हों तो हिन्दी विकीपीडिया पर रामप्रसाद 'बिस्मिल' देखें, लिंक ये है: http://en.wikipedia.org/wiki/Ram_Prasad_Bismil

Wednesday, September 21, 2011

Cap's Caption

क्या मतलब?

नरेन्द्र मोदी ने एक इमाम की टोपी नहीं पहनी इस पर मीडिया में बबाल मचा हुआ है एक कता अर्ज है:

"आज जो लोग हमें टोपियाँ पिन्हायेंगे,
 कल वही लोग मेरी टोपियाँ उछालेंगे.
पहन लेने को सिर्फ एक कैप काफी है,
लोग इस बात के मतलब कई निकालेंगे."

Thursday, September 15, 2011

Subject Situation

सूरते-हाल

सूरते-हाल ऐसे हैं क्या कीजिये ?
अब तो इस मर्ज की कुछ दवा कीजिये ?

इससे पहले कि हो जाये तर्के-अहद,
आप ही अब कोई फैसला कीजिये.

जिनकी आँखों में गैरत का पानी नहीं,
उन निगाहों से कैसे बचा कीजिये ?

आदमी अपनी नीयत से मजबूर है,
उससे गिरगिट भी डरता है क्या कीजिये ?

इस ज़माने का ऐसा ही दस्तूर है,
अब ये दस्तूर बदले दुआ कीजिये ?

'क्रान्त' फिर से तमन्ना जबाँ हो सके,
ऐसा कुछ दर्द दिल से अता कीजिये ?
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तर्के-अहद = प्रतिज्ञा-भंग, अता=अभिव्यक्त

The Tragic Silence

तटस्थ शान्ति?

चुप्पियों के अर्थ गहरे हो गये हैं.
मौन के अक्षर सुनहरे हो गये हैं.

शोर से अनभिज्ञ हैं अब तक दीवारें,
खिड़कियों के कान बहरे हो गये हैं.

त्रासदी के बोझ से घायल दिशायें,
मार से बीमार दोहरे हो गये हैं.

चाल चलता जा रहा हर बार कोई,
हम महज इंसान मोहरे हो गये हैं.

रूढ़ियों की बेडियाँ जब से कटी हैं,
और दकियानूस पहरे हो गये है.

'क्रान्त' जबसे आँख का पानी मरा है,
शक्ल से मनहूस चेहरे हो गये हैं.

Wednesday, September 14, 2011

Linguistic Love of Bismil

बिस्मिल का हिन्दी-प्रेम

"न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना.
मुझे वर  दे यही  माता !  रहूँ  भारत  पे  दीवाना.

मुझे हो प्रेम हिन्दी से, पढूँ हिन्दी लिखूँ हिन्दी;
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहनना- ओढना- खाना.

रहे   मेरे   भवन  में  रौशनी ,   हिन्दी - चिरागों  की;
कि जिसकी लौ पे जलकर खाक हो 'बिस्मिल'-सा परवाना." 
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मन की लहर पुस्तक से साभार  

Sunday, September 11, 2011

Hail Hindi (14 Sept 2011)

हिन्दी-दुर्दशा

हिन्दी में छेड़ा गया, आज़ादी का युद्ध;
तिलक-गान्धी-बोस थे,कोई नहीं विरुद्ध.
कोई नहीं विरुद्ध , मराठी या गुजराती;
बंगाली ने स्नेह दिया, यह है वह बाती.
कहें'क्रान्त'होंतमिल-तेलगू,या हों सिन्धी;
सभी जनों ने केवल अपनाई थी हिन्दी.

उसका ही परिणाम है, देश हुआ आज़ाद;
हम भाषा के भेद को, भुला हुए आबाद.
भुला हुए आबाद,किन्तु जब अवसर आया;
संविधान बनने का तब क्यों उसे भुलाया.
कहें 'क्रान्त' है दोष बताओ,इसमें किसका;
जनता का तो नहीं, बना जो नेता उसका.

आज़ादी के बाद जब, अपना बना विधान;
हिन्दी भाषा को नहीं,मिला उचित स्थान.
मिला उचित स्थान, अड़ गये थे नेहरूजी; 
बोले -  "पन्द्रह  वर्ष  रहेगी   बस अंग्रेजी."
कहें 'क्रान्त' कर गये, एकता की बरबादी;
हिन्दी को कम  करने की , देकर आज़ादी. 

हिन्दी ने हमको दिया, आज़ादी का स्वाद;
कूटनीति ने कर दिया, हिन्दी को बरबाद.
हिन्दी को बरबाद, कुटिल केकई न मानी;
पन्द्रह वर्षों में  इंग्लिश, हो गयी सयानी.
कहें 'क्रान्त' बन गयी सुहागन,रचकर बिन्दी;
सौतन करती राज, हो गयी बाँदी हिन्दी.

Thursday, September 8, 2011

Blood Group-"P"

मिर्ज़ा ग़ालिब की एक ग़ज़ल पर

बिस्मिल जी की ये कता पढ़ें और प्रतिक्रिया दें:

"हकीर होके न हिन्दोस्ताँ में यूँ रहिये.
ये जोर जुल्म जलालत  जहाँ  में  क्यूँ सहिये.
रहे रगों में रबाँ वो लहू नहीं 'बिस्मिल',
बहे जो कौम की खातिर उसे लहू कहिये."

शहीदे-आज़म पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल'
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नोट: "जो आँख ही से न टपके तो फिर लहू क्या है?"- (ग़ालिब). शब्दार्थ:  हकीर=इतना अधिक छोटा

Monday, September 5, 2011

Basic Education v/s Corruption

करप्शन की पैदाइश

(आज  भारत के दार्शनिक राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म-दिन है जिसे सम्पूर्ण देश में शिक्षक-दिवस के रूप में मनाया जाता है. उनको स्मरण करते हुए कुछ कवितायेँ कुण्डली छन्द में भ्रष्टाचार पर कुण्डली मार कर बैठे हुए इन अजगरों के कान खोलने के  लिये इस ब्लॉग पर दी जा रही हैं. पाठकों की प्रतिक्रिया ही तो हमारा सम्बल है अतः उसमें कंजूसी न करें, धन्यवाद!)


सन सैंतालिस में हुआ, जब ये देश आज़ाद;
विश्व बैंक से तब मिली, खरबों की सौगात.
खरबों की सौगात, बाढ़ पैसे की आयी;
चूक गयी सरकार, न कोई रोक लगायी.
कहें 'क्रान्त' जब हुई, करप्शन की पैदाइश;
कांग्रेस के कुल में, वह था सन सैंतालिस.

कैसे होता देश में, घर-घर यहाँ विकास;
जड़ में मट्ठा डालकर, किया तन्त्र का नाश.
किया तन्त्र का नाश, बढ़ी अंग्रेजी शिक्षा;
चौपट होती गयी, गाँव की बेसिक शिक्षा.
कहें 'क्रान्त' जो जैसा बीज खेत में बोता;
उसका वैसा बृक्ष,और वैसा फल होता.

बेसिक शिक्षा पर यहाँ, होता कितना खर्च;
इस पर जब हमने करी, वर्षों बड़ी रिसर्च;
वर्षों बड़ी रिसर्च, समझ में तब ये आया;
क्यों घनघोर अशिक्षा का यह संकट आया.
कहें 'क्रान्त' यदि विश्व बैंक से मिले न भिक्षा;
यह सरकार न दे पायेगी बेसिक शिक्षा.

जस राजा तैसी प्रजा, प्रजातन्त्र का अर्थ;
प्रजातन्त्र में जस प्रजा, वैसा तन्त्र समर्थ.
वैसा तन्त्र समर्थ, अर्थ समझो ऐसे ही;
प्रजा मूढ़ तो प्रतिनिधि भी होंगे वैसे ही.
कहें 'क्रान्त' बेसिक शिक्षा का मतलब ताजा;
प्रजा रहेगी वैसी ही, चाहे जस राजा.

बेसिक शिक्षा मायने, बुनियादी तालीम;
नहीं मिले तो मानिये, होगा मुल्क यतीम.
होगा मुल्क यतीम, समस्या तब; सुलझेगी;
जब शिक्षा की नींव यहाँ मजबूत बनेगी.
कहें 'क्रान्त' मत विश्व बैंक से माँगो भिक्षा;
अपने दम पर आप सुधारो बेसिक शिक्षा.


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Friday, September 2, 2011

Hard nut to crack

कबाब की हड्डी

"हालत बयान क्या करें अब उस शबाब की.
बीबी जबान जैसे हो बूढ़े नबाब की .
अन्ना को बुलाकर के अब पछता रहे हैं वो,
ये तो गले में बन गया हड्डी कबाब की."
डॉ. 'क्रान्त' एम.एल.वर्मा
http://krantmlverma.blogspot.com/ पर भ्रष्टाचार का भस्मासुर अवश्य पढ़ें